Sawan Somvar Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन साल का पांचवां महीना है जो कि आज यानी 22 जुलाई से शुरू हो गया है. धार्मिक दृष्टि से जितना महत्व सावन का है, उतना ही महत्व पहले के साथ दूसरे सोमवार के दिन व्रत रखने का है. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. साथ ही विवाह में आ रही सभी रुकावटों से छुटकारा मिल सकता है. इस साल का सावन बेहद खास माना जा रहा है, क्योंकि इस बार सावन का महीना सोमवार से शुरू होने जा रहा है.
देवों के देव महादेव को सावन का महीना सबसे प्रिय माना गया है. ऐसी मान्यता है कि सावन में अगर कुंवारी कन्याएं सोमवार का व्रत रखें और विधि-विधान से शिवजी की पूजा-अर्चना करें, तो उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है. साथ ही भगवान शंकर के साथ माता पार्वती की कृपा भी प्राप्त होती है. सावन में शादीशुदा महिलाएं अपनी पती की लंबी आयु के लिए 16 सोमवार का व्रत करती हैं. वहीं, कुंवारी कन्याएं योग्य वर पाने के लिए सेमवार का व्रत रखती हैं. सावन सोमवार व्रत महिला या पुरुष कोई भी रख सकता है. ऐसे में अगर आप सावन के पहले सोमवार के दिन व्रत रख रहे हैं, तो इस दिन व्रत कथा पढ़ना बेहद जरूरी है.
सावन के सभी सोमवार पर पढ़ें ये व्रत कथा (Sawan Somvar Vrat Katha)
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार एक धनी व्यापारी था जो कि भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था. उसके पास बेशुमार धन-दौलत थी, लेकिन धन से संपन्न होने के बावजूद वह बेहद दुखी रहता था, क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी. वह पुत्र की चाह में दिन-रात भगवान शिव की आराधना करता था और हर सोमवार को व्रत करता था. उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा कि यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है, तो आप उसकी मनोकामना पूरी कर दीजिए.
यह सुनकर महादेव ने माता पार्वती से कहा कि इस साहूकार के साथ कोई पुत्र न होने के कारण यह दुखी रहता है. माता पार्वती ने शिव जी से उस व्यापारी को वरदान देने के लिए कहा. इस पर महादेव ने देवी पार्वती को बताया कि इस साहूकार के भाग्य में पुत्र के योग नहीं है. ऐसे में अगर इसे पुत्र का वरदान दिया गया, तो वह बालक सिर्फ 12 साल की आयु तक ही जीवित रह पाएगा. इतना सुनने के बाद माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि उस साहूकार को पुत्र का वरदान दे दीजिदए, अन्यथा वो भक्त आपकी पूजा करना छोड़ देगा. माता के बार-बार कहने से भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया, लेकिन वह सिर्फ 12 साल तक ही जिंदा रहेगा.
भगवान शिव से पुत्र का वरदान पाकर वह व्यापारी बहुत खुश हुआ, लेकिन वह बेटे की इतनी कम उम्र सोचकर दुखी हो गया. बेटे के जन्म के बाद भी वह व्यापारी रोजाना भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता रहा और सोमवार का व्रत रखा था. इसके बाद बेटे के 11 साल होते ही व्यापारी ने उसे उसके मामा के साथ काशी जाने को कह दिया. व्यापारी ने अपने बेटे के मामा से कहा कि इसे काशी में पढ़ाईए और रास्ते में जहां पर भी रुकना, यहां यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए आगे बढ़िएगा.
उसी रास्ते में एक राजकुमारी का विवाह हो रहा था, जिससे उस राजकुमारी का विवाह होना था, वो एक कान से काना था. जब राजकुमारी के पिता ने उस साहूकार के सुंदर बेटे को देखा तो सोचा क्यों न इसे ही घोड़ी पर बिठाकर इससे सारी रस्में करा दी जाएं. इसके लिए उन्होंने उस लड़के के मामा से बात की और कहा कि इसके बदले में हम तुम्हें खूब धन देंगे. यह सुनकर मामा भी राजी हो गए.
इसके बाद साहूकार का बेटा विवाह के मंडप में बैठा और विवाह के सभी काम संपन्न हुए. जाने से पहले साहूकार के बेटे ने राजकुमारी की चुनरी पर लिख दिया कि तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है लेकिन जिसके साथ तुम्हें भेजेंगे वह तो एक आंख से काना है. इसके बाद साहूकार का बेटा अपने मामा के साथ काशी चला गया. जब राजकुमारी ने अपनी चुनरी पर वह लिखा हुआ देखा तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया. इसके बाद राजा ने अपनी पुत्री को बारात के साथ विदा नहीं किया. बारात वापस लौट गई और उधर मामा और भांजे काशी दोनों काशी पहुंच गए.
एक दिन काशी में यज्ञ के दौरान साहूकार के बेटे के प्राण निकल गए और यह देख उसके मामा रोने लगे. उस समय भगवान शिव से माता पार्वती ने पूछा कि प्रभु ये कौन रो रहा है. तब उन्हें पता चला कि यह वही शिवजी के वरदान से जन्मा व्यापारी का पुत्र है. तब माता पार्वती ने कहा स्वामी दोबारा इसे जीवित कर दीजिए, अन्यथा रोते-रोते इसके माता-पिता के प्राण त्याग देंगे. तब भगवान शिव ने बताया कि इसकी आयु इतनी ही थी लेकिन माता पार्वती के बार-बार कहने पर शिव जी ने उसे जीवित कर दिया.
इसके बाद व्यापारी का पुत्र ओम नमः: शिवाय: करते हुए उठ बैठा और मामा-भांजे दोनों ने भोलेनाथ और पार्वती माता को धन्यवाद किया और अपने नगर वापस लौट गए. तभी रास्ते में साहूकार का बेटा गिर गया और राजकुमारी ने उन्हें पहचान लिया. तब राजकुमारी के पिता ने साहूकार के बेटे का अपनी बेटी के साथ विवाह कराया और बहुत सारे धन-धान्य के साथ विदा किया. इसके बाद वो अपने गांव लौट गए.
साहूकार अपने बेटे और बहु को देख कर बहुत खुश हुआ. उसी रात साहूकार को स्वप्न ने शिवजी ने दर्शन दिया और कहा कि तुम्हारी पूजा से मैं प्रसन्न हुआ. इसी प्रकार जो भी व्यक्ति इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उसकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और साथ ही हर अधूरी इच्छा पूरी हो जाती है.