Neeraj Patel Biography: देश की मोदी सरकारी युवाओं से रोजगार देने के कई वादे करती हैं लेकिन बेराजगारी लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में कई कंपनियों में रोजगार करने वाले युवा छंटनी का शिकार हो रहे हैं, जिससे बेरोजगारी और बढ़ती जा रहीं हैं. आज हम एक ऐसे युवा के बारे में बात करने जा रहे हैं जिसने अपने पूरे जीवन की कहानी बताई है. अगर आप लोग इस युवा के जीवन की कहानी सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे की कैसे वह युवा कम सैलरी में दिल्ली, नोएडा जैसे में शहर में जीवन गुजार रहा है और अपने बच्चों को पढ़ा रहा है.
उत्तर प्रदेश के जालौन जिले की तहसील कोंच क्षेत्र के ग्राम बौहरा निवासी नीरज पटेल का जन्म 10 अगस्त 1994 हुआ था. उसके पिता का नाम संतोष कुमार और माता का नाम प्रवेश कुमारी है. उसके एक छोटी बहन भी है जिसका नाम हेमलता (रूपल है). जो कि भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर में सरकारी नौकरी करती है. नीरज की पत्नी का नाम अंकिता है और दो बच्चे हैं, बेटी का अवनी और बेटे का नाम संस्कार पटेल है.
नीरज पटेल का कहना है कि उसकी पढ़ाई जालौन जिले के कोंच में एक हिंदी मीडियम स्कूल से हुई है. सातवीं क्लास तक कोंच के ही एक स्कूल में पढ़ाई की. इसके बाद और अच्छी पढ़ाई के लिए माता-पिता ने आठवीं क्लास से फिरोजबाद जिले के नगलागुलाल गांव के एक आवासीय इंटर के हॉस्टल में भेज दिया. इसके आगे नीरज ने कहा कि मैं हॉस्टल में सिर्फ अपनी पढ़ाई 10वीं क्लास तक ही कर पाया. लेकिन घर की अर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण फिर से अपने कोंच क्षेत्र में 11वीं और 12वीं की पढ़ाई करनी पड़ी.
पढ़ाई का सफर
अब सफर शरू होता है ग्रेजुएशन की पढ़ाई का. इंटरमीडिएट की परीक्षा पास होने के बाद B.sc मैथमैटिक्स में एडमिशन लिया. बस फिर क्या था कि ज्यादा पैसे न होने की वजह से नीरज पढ़ाई के साथ पिता के काम में हाथ बंटाता था. नीरज के पिता एक किसान हैं. वह खेती किसानी करके ही अपने जीवन चलाते थे. और अपने बच्चों को पढ़ाते थे. नीरज ने कहा कि मेटी बहन हेमलता पढ़ने में ज्यादा होशियार थी. इसलिए उसने पिता के सपनों को पूरा कर दिया, और आज भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर में सरकारी जॉब कर रही है. लेकिन मैं पढ़ने में ज्यादा होशियार नहीं था और पढ़ाई में भी मन नहीं लगता था. इसलिए मैं पिता के साथ खेती किसनी के कामों में हाथ बटाने लगा.
जब 2013 में मेरी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कंपलीट हो गई और 2015 में मेरी उम्र 24 साल की हुई तो पिता ने शादी कर दी. तब मेरे पास कोई रोजगार नहीं था. कमाई का कोई जरिया नहीं था. इसलिए खर्चे उठाना मुश्किल हो रहा था. क्योंकि मैं पिता के लिए अक नाकारा बेटा बन कर रह गया. क्योंकि कोई रोजगार न होने की वजह से पत्नि के खर्चे मुझे ही उठाने थे. फिर शादी के बाद कुछ ही महीनों में पिता ने मेरे लिए 1 लाख रुपए में एक ओमिनी वैन गाड़ी खरीद दी. उसी से मैने गाड़ी चलाना सीखा फिर उसी गाड़ी को भाड़े पर चलाया करता था, जिससे मैं एक ड्राइवर बनकर रह गया. क्योंकि गाड़ी के किराए पर चलाने के बाद भी पूरा हिसाब पिता को देना पड़ता था.
किराए पर चलाई गाड़ी
जब नीरज गाड़ी किराए पर चलाता था तो रात-रातभर घर से बाहर रहना पड़ता था. जो कि मेरी बीबी को बिल्कुल भी पसंद नहीं था. नई-नई शादी के बाद से ही मेरा जीवन कई तरह के संघर्ष से भर गया. जब गाड़ी चलाते-चलाते 6 महीने बीत गए तो मेरी बीबी ने मुझे आगे और पढ़ने के लिए कहा कि अभी समय है पढ़ाई कर लो, नहीं तो आगे चलकर लोग बच्चों को चिढ़ाएंगे. कि ये देखो ड्राइवर का बेटा जा रहा है. तो मैंने कहा कि पिताजी मुझे आगे नहीं पढ़ाएंगे. इसके लिए तुम्हें ही बात करनी पड़ेगी तभी कुछ हो सकता है.
नीरज ने आगे बताया कि जब पत्नि ने मेरी आगे की पढ़ाई के लिए पापा से मंजूरी ले ली. तो मैंने पढ़ाई के लिए तैयार हो गया है. इसके बाद फिर मैंने जर्नलिज्म की पढ़ाई के लिए जीवीजी यूनिवर्सिटी में MJMC क्लास में एडमिशन ले लिया और पढ़ाई शुरू कर दी. जब मेरी शादी को सिर्फ 6 महीने ही हुए थे. बीबी से अलग रहकर मैंने मास कॉम की पढ़ाई शुरू कर दी. लेकिन फिर भी पढ़ाई के बीच में कई सवाल उठते रहे कि पढ़ाई करूं या फिर नहीं. क्योंकि पढ़ाई छोड़े पूरा 2 साल हो गए थे. इसलिए पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगता था.
मास कॉम की पढ़ाई
मास कॉम की पढ़ाई के समय में एक समय ऐसा आया कि बीच में ही पढ़ाई छोड़ने का फैसला ले लिया और रूम खाली करके घर वापस आ गया. जिस दिन पढ़ाई छोड़कर मैं घर वापस आया था उसके दूसरे मेरा तिमाही परीक्षा का पहले पेपर था. बस फिर क्या था. घर पहुंचने के बाद मैं रातभर सोया नहीं, बस यही सोचता रहा कि पढ़ाई छोड़कर वापस घर आकर मैं कोई बड़ी गलती तो नहीं कर रहा. फिर मुझे लगा कि नहीं मुझे और पढ़ना चाहिए. यहीं सोचता रहा, रातभर सोया नहीं. इसकेबाद सुबह उठकर 4 बजे की बस में बैठकर परीक्षा देने के लिए यूनिवर्सिटी पहुंच गया और छान लिया कि अब तो पढ़ाई पूरी करके ही छोड़ेंगे. क्योंकि पापा ने मुझे पढ़ने के लिए आखिली मौका दिया था.
शादी के बाद बीबी से अलग रहकर पढ़ाई करना बहुत कठिन था. लेकिन पढ़ाई के दौरान महीने में एक बार घर जरूर आया करता था. लेकिन दोबारा पढ़ाई छोड़ने का फैसला नहीं लिया. पढ़ाई करते मुझे जब डेढ़ साल बीत गए तो मेरे एक सुंदर सी बेटी हुई. इसके बाद मुझे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास होने लगा. 2017 में जब मेरी पढ़ाई कंपलीट हुई तो मुझे यूनिवर्सिटी से एक इंटर्नशिप लेटर मिला, जिसके जरिए मैं किसी भी मीडिया संस्थान में एक महीने क इंटर्नशिप कर सकता था.
सफलता के पीछे महिला का हाथ
नीरज ने आगे कहा कि एक कहावत है कि किसी व्यक्ति की सफलता के पीछे एक महिला का हाथ होता है तो ऐसा ही मेरे साथ हुआ. मेरी सफलता के पीछे मेरी पत्नि अंकिता का हाथ है. जिसके कारण आज में सफल हो पाया हूं. पढ़ाई पूरी करने के 15 दिन बाद मैने 21 अगस्त 2017 को राजस्थान पत्रिका लखनऊ में इंटर्नशिप के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. एक महीने की इंटर्नशिप जब पूरी हो गई तो दूसरे महीने से मुझे कुछ पैसे मिलने शुरू हो गए. इंटर्नशिप के तौर पर मुझे जब दूसरे महीने की सैलरी के रूप में करीब 8000 रुपए पहली बार मिले. जो मरे जीवन की पहली कमाई थी. इससे मैं बहुत खुश था. इसके बाद मैने और मेहनत की तो मेरे पैसे हर महीने बढ़ते चले गए.
राजस्थान पत्रिका लखनऊ में पार्टटाइम के दौर में मैंने न्यूज लिखना, उसकी एडिटिंग करना, न्यूज का गूगल बेस्ड एसईओ करना और बहुत कुछ सीखा. जिससे अच्छा ट्रैफिक आता था. राजस्थान पत्रिका यूपी में पूरी तरह से डिजिटली थी. मैने अपने करियर की शुरुआत डिजिटल मीडिया से ही की है. मेरे बॉस महेन्द्र प्रताप सिंह सर थे. जिन्होंने मुझे कई सारी चीजे सिखाई हैं. और मेरे एसईओ मैनेजर मनीष रावत सर थे. जिन्होंने मुझे एसईओ और एसएमओ का काम सिखाया ताकि डिजिटल मीडिया में अच्छा ट्रैफिक ला सकूं. राजस्थान पत्रिका लखनऊ में मुझे पूरी स्वतंत्रता के साथ काम करने का मौका मिला. हर सीनियर साथियों का संपोर्ट मिला. मैंने पत्रिका में रहते 4 साल में इतना कुछ सीखा है कि शायद ही कोई नहीं सीख सकता.
करियर की शुरुआत
मेरी मेहनत और काबिलियत को देखते हुए 2019 में एक अप्रैल को मेरी पे-रोल के रूप में जॉइनिंग हुई. 2020 में मेरी पत्नि गर्भवती होने की वजह से घर पर ही थी. और मैं लखनऊ में था. 28 जनवरी 2020 में मेरी पत्नि ने एक बेटे को जन्म दिया और मेरा परिवार पूरा हो गया. इससे मैं बहुत खुश था. 2020 में जब मैंने होली पर घर जाने का प्लान तैयार किया तो उससे पहले ही कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लग गया और मैं लखनऊ से घर नहीं जा पाया. वहीं लॉकडाउन के कारण मेरी सैलरी भी कटकर आने लगी जिससे मुझे अपने खर्चे चलाना मुश्किल हो गया तो मैंने 1 अगस्त 2020 से ऑफिस से वर्क फ्रॉम होम की मंजूरी ले ली. और रूम खाली करके घर वापस आ गया और पूरे एक साल कर वर्क फ्रॉम होम किया. उस समय मेरी सैलरी 21000 रुपए सीटीसी थी और इनहैंड सैलरी 17000 रुपए थी लेकिन कटकर 15000 रुपए खाते में आती थी.
इसके बाद जब अप्रैल 2021 में मेरा अपॉइंटमेंट लेटर का रिन्यूवल हुआ तो मेरी मेरी सीटीसी 21000 से घटाकर 20000 रुपए कर दिया गया. जब ये समय अप्रैजल (इंक्रीमेंट) का होता है. इसके तीन महीने बाद मैने 30 जून 2021 को राजस्थान पत्रिका से रिजाइन कर दिया. रिजाइन करने के बाद मैं बेरोजगार हो गया. इसक बाद मैंने बिजनेस करने का सोचा तो मैंने बिना किसी अनुभव के एक रेस्टोरेंट खोल कर खुद का बिजनेस शुरू कर दिया. जिसमें मैंने पापा के 12 से 15 लाख रुपए खर्च कर दिए. रेस्टोरेंट के बिजनेस में पहले तो अच्छा मुनाफा हुआ, लेकिन दो महीने बाद ऐसा नुकसान हुआ मेरे पापा कम से कम 10 रुपए के कर्जे में चले गए. और महीने बाद मेरा रेस्टोरेंट का बिजनेस ठप हो गया.
नई नौकरी
नीरज का कहना है कि यहां भी मैं अपने पिता के लिए नाकारा बेटा बनकर साबित हुआ. इसके बाद बाद फिर में पिता के साथ खेती किसानी में हाथ बंटाने लगा. और साथ में रोजगार की भी तलाश करने लगा कि कैसे भी करके नौकरी मिल जाए. रेस्टोरेंट बंद हुए 5 महीने बीत गए. फिर मैने अगस्त 2022 में अपना रिज्यूम टीवी 9 भारतवर्ष में अपने दोस्त विकास के जरिए भेजा. तो मुझे 2 दिन बाद ही टीवी9 डिजिटल के नोएडा ऑफिस से इंटरव्यू के लिए कॉल आ गई. इंटरव्यू हो गया. उसके 15 दिन बाद एचआर की कॉल आई तो मैने उनसे 35000 हजार रुपए मांगे. एचआर ने कहा कि इतना हाइक नहीं दे सकते. वह ज्यादा से ज्यादा 25 प्रतिशत का हाइक दे सकते हैं. मैं बेरोजगार था इसलिए मैं 25 प्रतिशत हाइक के साथ मंथली 26000 रुपए सीटीसी के लिए तैयार हो गया.
नीरज पटेल ने कहा कि मैने टीवी9 भारतवर्ष में 8 सितंबर 2022 में जॉइनिंग की थी. और मेरे खाते में 22400 रुपए मिलने शुरू हो गए. जो कि नोएडा जैसी सिटी के हिसाब से बहुत कम है. आज मुझे टीवी9 भारतवर्ष में नौकरी करते 10 महीने पूरे हो गए है. और मुझे एक इंक्रीमेंट भी मिल गया है. इससे मेरी सैलरी में करीब 4 परसेंट की बढ़ोतरी हुई है. इंक्रीमेंट के बाद मेरी इनहैंड सैलरी 22400 से बढ़कर 23562 रुपए हो गई. इसी में मुझे अपने खर्चे चलाने होते हैं.
महीने का खर्च
मौजूदा समय में कमरे का किराया 8000 रुपए, 2000 रुपए तक लाइट बिल, 3000 रुपए बेटी की फीस, 1500 रुपए बेटे की फीस, 2000 रुपए दूध का खर्च 5 से 6 हजार रुपए राशन खर्च, 1000 रुपए पेट्रल खर्च, 2000 रुपए सुकन्या योजना की किस्त, 3000 रुपए सब्जी, और फल, आदि में खर्च हो जाते हैं. इसके बाद भी 5 से 6 हजार रुपए कम पड़ जाते हैं. यहां पर नौकरी करने के बाद भी पिता की नजरों में नाकारा बनकर रह गया. बता दें कि मौजूदा समय में नौकरी करना भी किसी रिस्क से कम नहीं है.
रिज्यूम देखने के बाद सामने आया है कि उसके पास जो नौलेज है शायद ही किसी के पास होगी. जिसके हिसाब से उसकी अच्छी खासी सैलरी होनी चाहिए. इस बारे में बात की गई तो पता चला कि आज के समय में नौकरी करना किसी रिस्क से कम नहीं है. आज कल लोग अपनी नौकरी बचाने में लगे हैं और सीनियर लोग ये जानना ही नहीं चाहते हैं कि आप कंपनी के लिए क्या सकते हैं. नौकरी सिर्फ अब केवल टारगेट पर ही अटककर रह गई है. अगर किसी जूनियर के पास अच्छी नौलेज है तो सीनियर के प्रेशर में अपनी नौलेज दबाकर रह जाता है. उसे बाहर ही नहीं निकाल पाता है. इसलिए नौकरी बचाने के लिए सीनियर की हर बात माननी पड़ती है. कोई अपने कर्मचारी को बिना किसी प्रेशर के फ्री होल्ड काम करने का मौका दे तो कर्मचारी अपनी पूरी मेहनत और लगन से काम करेगा. लेकिन आज के समय में ऐसा कुछ नहीं है.