Skip to content
Home » गंगा दशहरा और गंगा नदी का क्या है इतिहास? जानें महत्व

गंगा दशहरा और गंगा नदी का क्या है इतिहास? जानें महत्व

Ganga Dussehra History and Importance: गंगा नदी को देश की सबसे पवित्र नदी में माना जाता है. इसमें नहाने से लोगों के सारे पाप धुल जाते है. बहती गंगा का जिस दिन धरती पर अवतरण हुआ था, यानि जिस दिन वो धरती पर आई थीं, उस दिन को हम गंगा दशहरा के रूप में मनाते है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार. ये ज्येष्ठ माह में ज्यादातर आती है. इस दिन देश विदेश से लोग गंगा तट के किनारे स्नान व उसकी पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं. गंगा दशहरा पर दान व स्नान का बहुत महत्त्व है. अगर आपके आसपास गंगा जी नहीं है, तो आप कोई भी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें और गंगा जी के जाप का उच्चारण करें. इसके बाद गरीब और जरुरतमंद लोगों को दान दक्षिणा दें. गंगा दशहरा का महोत्सव पुरे दस दिन तक मनाया जाता है.

हिमालय से निकली गंगा ने भारत देश को अपने चरन कमलों से पवित्र कर दिया. इसके आने से देश के कई हिस्सों में पानी की किल्लत खत्म हो गई, लोगों को पानी मिलने से राहत पहुंची, साथ ही कहा जाता है पवित्र गंगा ने मनुष्यों के नरक जाने के रास्ते बंद कर दिए, क्यूंकि इस पर नहाने से लोगों के सभी पाप खत्म हो जाते हैं.

कब मनाया जाता है गंगा दशहरा | Ganga Dussehra Tithi

हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दसवी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, ज्येष्ठ माह मई व जून के बीच आता है. इस दिन को गंगावतरण भी कहते है. ये शब्द गंगा व अवतरण से मिलकर बना है.

गंगा नदी का इतिहास व कथा | Ganga River History

भगवान राम की नगरी अयोध्या में एक राजा हुआ करते थे, सगर. इनकी 2 रानियां थीं, जिसमें से एक रानी के 60 हजार पुत्र थे, व दूसरी के सिर्फ एक पुत्र था. राजा ने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए अश्वमेव यज्ञ का आयोजन किया. उन्होंने समूचे भारत में भ्रमण के लिए और सभी राजाओं को बताने के लिए अपने अश्व को छोड़ा. महाराज इंद्र सगर राजा का यह यज्ञ सफल नहीं होने देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अश्व को अगवा कर लिया. सगर राजा के सभी बेटे इस घोड़े की खोज में लग गए.

समस्त पृथ्वी में खोज करने के बाद भी अश्व का कुछ पता न चला. जिसके बाद राजा ने पाताललोक में खोज करने का हुक्म दिया. पाताल में खुदाई हुई, उसी समय वहां महामुनि कपिल की समाधी लगी हुई थी, जो घोर तपस्या में लीन थे. उन्ही के समाधी के पास घोड़ा भी था, जिसे देख राजा के बेटों को गलतफहमी हो गई, और वे चिल्लाने लगे, जिससे कपिल महाराज की तपस्या भंग हो गई, और उनकी घोर तपस्या की तपन से राजा के 60 हजार पुत्र वहीं राख का ढेर हो गए.

दुसरे पुत्र ने अपने पिता को जाकर पूरी बात बताई. यहीं महाराज गरुड़ भी आए, जिन्होंने राजा सगर को अपने 60 हजार पुत्र मुक्ति प्राप्ति के लिए सिर्फ एक ही रास्ता बताया. उन्होंने बोला तुम्हें तपस्या करके गंगा को धरती पर लाना होगा, जैसे ही गंगा धरती में आएंगी, तुम्हारे पुत्रों की भस्मी पर पड़कर वे सब मुक्त हो जाएंगे. सगर और उनके पुत्र ने तपस्या की, लेकिन सफल नहीं हो पाए. इसके पश्चात् सगर राजा का पौत्र भागीरथ का जन्म हुआ. अपने पूर्वज के इस अधूरे काम को उसने अपना कर्तव्य समझा और ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की. ब्रह्मा जी खुश होकर प्रकट हुए, और वरदान मांगने को बोला.

भागीरथ ने गंगा को धरती में भेजने की मांग की, लेकिन यहां ब्रह्मा जी ने बताया कि धरती में इतना बल नहीं है कि वो गंगा के भार को सहन कर सके. अतः तुम्हें शिव से इसमें मदद लेनी चाहिए, वे ही है जो गंगा को धरती पर अपने द्वारा भेज सकते है. उस समय गंगा ब्रह्मा के कमंडल में थी, जिसे उन्होंने शिव की जटाओं में अवतरित किया.

ये भी पढ़ें – गंगा दशहरा पर ऐसे करें गंगा मैय्या की पूजा, पुण्य फल की होगी प्राप्ति!

भागीरथ ने अब फिर शिव की कड़ी तपस्या की, वे सालों एक अंगूठे पर खड़े रहे. इस दौरान गंगा कई सालों तक शिव की जटाओं में ही रही, वे इसमें से निकलना चाहती थी, और रसातल जाना चाहती थी. लेकिन इतनी जटिल जटाओं में वे खो ही गई, उन्हें बाहर निकलने का रास्ता ही समझ नहीं आता था. भागीरथ की तपस्या से खुश होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान पूरा करने का आश्वासन दिया. इसी के बाद गंगा जी की सात धाराएं, हिमालय के बिन्दुसार से होते हुए पृथ्वी पर आई. पृथ्वी में आते ही गंगा का विशाल रूप देख मानव जाती परेशान हो गई, उन्हें लगा भूचाल आ गया.

जिस रास्ते से गंगा निकल रही थी, वहां कई ऋषि मुनियों के आश्रम भी थे, जिसमें से एक थे महाराज जहू. गंगा को आता देख वे समझे ये कोई राक्षस की क्रीड़ा है तथा उन्होंने उसे अपने मुंह के अंदर ले लिया. भागीरथ समेत सभी देवताओं ने उनसे विनती की तब वे माने. इसी के बाद से उनका नाम जान्हवी पड़ा. इसके बाद भागीरथ ने अपने 60 हजार पूर्वज को मुक्ति दिलाई. यहां से गंगा को एक नया नाम भी दिया गया भागीरथी.

गंगा दशहरा का महत्त्व | Ganga Dussehra Mahatva

गंगा दशहरा को गंगा जी का जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है. सभी हिन्दू इस त्यौहार को बड़े जोर शोर से मनाते है. इस दिन गंगा जी में स्नान किया जाता है. गंगा जी के मुख्य घाट हरिद्वार, वाराणसी, इलाहबाद, ऋषिकेश में है. यहाँ इस त्यौहार की जोर शोर से तैयारी होती है. 10 दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में, गंगा के हर घाट में खास इंतजाम होते है, हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं. मेले लगाये जाते है, यहां का माहोल नासिक कुम्भ मेला व उज्जैन कुम्भ मेला या किसी अन्य कुम्भ से कम नहीं होता है. लोग स्नान, दान करके गंगा आरती करवाते है. कहते है इस दिन गंगा में डूपकी लगाने से 10 तरह के पाप मिट जाते है. स्नान के दौरान इस मन्त्र का जाप अपने मन में करते रहें.

“ऊँ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम: ..”

फिर हाथों में फूल लेकर इस मन्त्र को बोलें “ऊँ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा ..”

गर्मी में पड़ने वाले इस त्यौहार में आम, तरबूज, खरबूज, सत्तू का दान मुख्य रूप से किया जाता है.

1 thought on “गंगा दशहरा और गंगा नदी का क्या है इतिहास? जानें महत्व”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *