Nag Panchami 2024 Katha: हिन्दू धर्म में नाग पंचमी का पर्व हर साल सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस साल नाग पंचमी का पर्व 9 अगस्त दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है. धार्मिक मान्यता है कि, इस दिन सर्प देवता की विधि-विधान से पूजा और अभिषेक से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और आपके भीतर आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न हो जाती है. वहीं पूजन के बाद कथा पढ़ने की भी परंपरा कई सालों से चली आ रही है. नाग पंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि जो व्यक्ति नाग पंचमी की कथा पढ़ता या सुनता है उसकी सात पीढ़ियों को सर्पदंश का डर हमेशा के लिए खत्म हो जाता है.
ऐसी मान्यता है कि नाग पंचमी का व्रत करने और व्रत कथा पढ़ने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस व्रत के देव आठ नाग माने गए हैं. इस दिन अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख नामक अष्टनागों की पूजा की जाती है. इससे लोगों को नाग देवता से जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
नाग पंचमी कथा
पौराणक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक सेठजी के सात पुत्र थे. सातों के विवाह हो चुके थे. सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था. एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी. तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी. यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा कि ‘मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है.
यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा. तब छोटी बहू ने उससे कहा कि हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत. यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई. उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली. सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा कि ‘तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता. वह बोली कि भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूं, तब सर्प बोला कि अच्छा, तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ. तुझे जो मांगना हो, मांग ले. वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया.
कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि ‘मेरी बहन को भेज दो.’ सबने कहा कि ‘इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला कि मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था. उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया. उसने मार्ग में बताया कि ‘मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूंछ पकड़ लेना. उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई. वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई.
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा कि ‘मैं एक काम से बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना. उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया. यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई. परंतु सर्प के समझाने पर शांत हो गई. तब सर्प ने कहा कि बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए. तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया.
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा कि भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए. सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं. यह देखकर बड़ी बहू ने कहा कि ‘इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए. तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी. सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था. उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए.
राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि ‘महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो’. सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया. छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए. सर्प ने ठीक वैसा ही किया. जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गई. यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी.
यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो. सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए. राजा ने छोटी बहू से पूछा कि तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दंड दूंगा. छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है. यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहनकर दिखाओ. छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हार हीरों-मणियों का हो गया.
यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं. छोटी बहू अपने हार और ईनाम सहित घर लौट आई. उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है. यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी.
तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा कि यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूंगा. यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया. उसी दिन से नागपंचमी का पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है और सभी स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं.