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वरुथिनी एकादशी पर पूजा के समय सुनें ये व्रत कथा, पापों से मिलेगी मुक्ति!

Varuthini Ekadashi Katha: हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु को समर्पित है. साल भर में कुल 24 यानि एक महीने में 2 एकादशी तिथि पड़ती हैं. वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी व्रत रखा जाता है और पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है और व्रत कथा सुनी जाती है. इसके अगले दिन बारहवी तिथि को सुबह व्रत का पारण किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. साथ ही जीवन में खुशहाली और सौभाग्य के लिए व्रत भी रखा जाता है.

ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन पूजा करने से सभी मनचाही इच्छा पूरी होती है. इस दिन पूजा के समय वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. इसके बिना व्रत पूरा अधूरा माना जाता है. मान्यता है कि कि इससे पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. ऐसे में आइए पढ़ते हैं वरुथिनी एकादशी व्रत कथा…

वरुथिनी एकादशी की कथा

एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत विधि और महत्व के बारे में बताने को कहा. इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि इस एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस एकादशी का व्रत विधिपूर्वक से करने पर जीवन में हर सुख, सौभाग्य और पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पाप मिटते हैं. वरुथिनी एकादशी की कथा कुछ इस प्रकार है.

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मांधाता नामक एक रादा नर्मदा नदी के तट पर बसे अपने राज्य पर शासन करते थे. वे बहुत धार्मिक व्यक्ति थे और हर समय पूजा-पाठ, धर्म-कर्म आदि में लगे रहते थे. एक दिन वे नर्मदा नदी के तट पर ही तपस्या करने लगे और तप में लीन हो गए थे. तभी एक भालू आकर उन पर हमला कर देता है.

भगवान विष्णु ने बचाए राजा के प्राण

इसके बाद भालू राजा का पैर पकड़कर घसीटने लगा लेकिन उन्होंने अपनी ओर से अपने बचाव के लिए कोई विरोध नहीं किया और अपनी तपस्या में लीन रहे. वे भगवान विष्णु से अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना कर रहे थे. इस बीच भालू उन्हें घसीटकर जंगल तक लेकर चला गया. तभी भगवान विष्णु वहां पर प्रकट हुए और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उस भालू का गला काट दिया और राजा मांधाता के प्राण बचा लिए.

भालू के ​हमले से राजा मांधाता का एक पैर खराब हो गया क्योंकि भालू उसे चबा गया था. यह देख राजा मांधाता निराश हो गए, तब श्रीहरि ने उनसे कहा कि तुमने पिछले जन्म में जो कर्म किए थे, यह उसका ही परिणाम है. तुम वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी का करना. यह व्रत मथुरा में करना और विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा करना. उस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुमको नया शरीर प्राप्त होगा.
राजा मांधाता को एकादशी व्रत से प्राप्त हुआ नया शरीर

श्रीहरि के आदेश के मुताबिक, राजा मांधाता वरुथिनी एकादशी के दिन मथुरा पहुंचे और विधि-विधान से एकादशी व्रत रखा और भगवान विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा की. इसके बाद रात्रि जागरण कर अगले दिन व्रत का पारण किया. इस व्रत के प्रभाव से राजा मांधाता को नए शरीर की प्राप्ति हुई और सभी सुख मिले. साथ ही जीवन के अंत में उनको स्वर्ग प्राप्ति हुआ. ऐसे में जो भी व्यक्ति वरुथिनी एकादशी का व्रत रखता है, उसके पाप मिटते हैं और राजा मांधाता की तरह ही सभी सुख प्राप्त होते हैं.

वरुथिनी एकादशी पारण नियम | Varuthini Ekadashi Parana Niyam

वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है. भगवान विष्णु को तुलसी दल प्रिय है. ऐसा कहा जाता है बिना तुलसी के भगवान विष्णु कोई भोग स्वीकार नहीं करते हैं. इसलिए पारण के समय तुलसीदल को आप मुंह में रखकर पारण कर सकते हैं. मान्यता है कि आंवले के पेड़ पर भगवान का वास होता है. इसलिए एकादशी व्रत में आंवला खाकर उनके प्रसाद ग्रहण करके पारण करना चाहिए. पारण के लिए पकाए जा रहे भोजन में गाय के घी का इस्तेमाल करना बहुत ही शुभ माना गया है.

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